विश्व धरोहर में शामिल होना चाहिए कालिंजर का किला
नसीर अहमद सिद्दीकी
कालिंजर, बाँदा (बुंदेलखंड) उत्तर प्रदेश में स्थित भारत का विशालतम किला विश्व धरोहर मानकों के अनुकूल है| बुंदेलखंड के द्वार नाम से जाना जाने वाला यह किला प्रशासनिक व राजनैतिक अनदेखी का शिकार है| किले में वो सारी खूबियाँ मौजूद हैं जो किसी भी स्मारक को अन्तराष्ट्रीय धरोहर में शामिल होने के लिए होनी चाहिए| भारत में इस समय 28 स्मारक यूनेस्को के मानकों के तहत विश्व धरोहर के अंतर्गत आते हैं| अन्तराष्ट्रीय धरोहर में सम्मिलित उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीकरी ,आगरा किला, ताजमहल व उत्तराँचल की नंदा देवी सन्निकट फूलों की घाटियाँ हों या मध्य प्रदेश के भीम बैठका , खजुराहो अथवा दिल्ली के लाल किले, हुमायूँ का मकबरा अथवा कुतुबमीनार हैं।
इन सबमें कालिंजर के किले का ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, कला या सांस्कृतिक पक्ष बेहद मज़बूत होने के बावजूद अब तक विश्व दाय श्रेणी में ना आ पाना काफी दुखदायी है| बुन्देलखण्ड के एकमात्र खजुराहो मन्दिर (छतरपुर,मध्य प्रदेश) विश्व धरोहर में सूचीबद्ध है| जो चंदेलकालीन कालिंजर किले के अंदर कार्यशाला में तराशकर विकसित किया गया था।
पौराणिक इतिहास :
कालिंजर का शाब्दिक अर्थ है काल अर्थात समय + जर यानी हारक या नाश करने वाला|
समुद्र मंथन से निकले विष को भगवान् शिव पीकर इसी स्थान पर बैठ कर मृत्यु पर विजय पायी थी| फलस्वरूप यहाँ का नाम कालिंजर पड गया| विष हरण के समय शिव का कंठ नीला पड गया था इसलिए उस स्थल पर नीलकंठ मंदिर का कालन्तर में निर्माण हुआ| कालिंजर को सतयुग में ‘कीर्तिनगर’ द्वापर में ‘सिंघल गढ़’ त्रेता में ‘मध्य गढ़’ और कलयुग में कालिंजर नाम से जाना गया|
कालिंजर किले का इतिहास
खजुराहो के नजदीक बांदा जनपद,उत्तर प्रदेश के विन्ध्य श्रेणी पहाड़ों के अंत में बुंदेलखंड के समतल में 1203 फीट ऊँचाई पर कालिंजर नामक स्थान पर यह किला बना है| किले के बहुत से मंदिर गुप्त कालीन 3-5 वीं सदी के बने हैं| शिव भक्त पर्मदिदेव नें नीलकंठ मंदिर बनवाया था| आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार सरिस्का तिगर रिजर्व में रखे शिलालेख के मुताबिक 150-250 ईस्वी में मंथन देव बरगूजर राजा के काल में नील कंठ महादेव मंदिर निर्माण हुआ था| कर्नल जेम्स तोड़,राजस्थान के इतिहास व प्राचीन ग्रंथों ने इसकी पुष्टि भी की|
अठारवीं सदी अंग्रेज इतिहास कार ‘राजा सागर डैम ‘बरोली’ नें समर्थन किया| महागुज्रात प्रतिहार 500 -1150 ईस्वी का अंश था| चंदेल राजपूत ,बडगूजर की शाखा थे| नवीं-पंद्रहवीं सदी में यहाँ चंदेलों का शासन था| 1019 -1022 में महमूद गजनवी ने दो बार कालिंजर में आक्रमण किया| 1203 में कुतुबुद्दीन ऐबक को परमादिदेवा चंदेल शासक ने हराया| हुमायूँ ने भी यहाँ आक्रमण किया |
1569 में अकबर ने कालिंजर किले को जीतकर इसे बीरबल को उपहार स्वरुप भेंट कर दिया| जो कि बबाद में बुंदेलखंड के छत्रसाल के हाथों पहुँच गया और बाद में पन्ना के हरदेव शाह को दे दिया गया| सं 1812 में अंग्रेजों के कब्जे से पहले तक हरदेव के हाथ ही रहा|
पख्तून राजा शेरशाह शूरी 1545 में यहीं मारा गया उसकी अंतड़ियां यहीं दफ़न हैं| 1812 में अंग्रेज सैनिकों नें बुंदेलखंड का भ्रमण किया लेकिन इनके हमलों का असर नहीं पड़ा| हालांकि 1857 के इतिहास में कालिंजर का विशेष महत्त्व रहा.
वह बातें जिसके तहत कालिंजर किले को विश्व धरोहर की श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है
1 . महत्वपूर्ण स्मारक ;
ऐतिहासिक नीलकंठ मंदिर जिसमें 4.6 फीट का शिव लिंग है| यहाँ शिव, भैरव, गणेश, हनुमान की मूर्तियाँ बनवाई गयीं|
भैरव -पार्वती, त्रिमूर्ति, वेंकट विहारी मंदिर
तीन द्वार: कामता द्वार,पन्ना द्वार,रीवा द्वार
सात दरवाजे :अलमगीर, गणेश द्वार, चौबुरी दरवाजा, बुद्ध भद्र दरवाजा, हुमायूँ द्वार, लाल दरवाजा, बड़ा दरवाजा
ताल(जलाशय) : पाताल गंगा, पांडु कुंड,बुड्ढा -बुढ़िया ताल (कुष्ठ रोगियों हेतु जल लाभदायक), कोटि तीर्थ (सबसे बड़ा जलाशय), सीता सेज, गजन्तक शिव (मंडूक, भैरव, भैरवी)
त्रिमूर्ति चेहरा जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश के चेहरे हैं| शेषनाग, कामदेव, इंद्र की पत्नी इन्द्रानी व शिव के चित्र हैं|
2 .विशिष्ठ स्थापत्य कला,शिल्प कला :
जिसके कारण लाल किला, क़ुतुब मीनार, हुमायूँ का मकबरा, फतेहपुर सीकरी इस श्रेणी में लिए गए|
3 .जाने माने इतिहासकार प्रोफ़ेसर नदीम हसनैन व इरफ़ान हबीब के मुताबिक कालिंजर में डेढ़ लाख साल पुराने अद्भुत शैल चित्र या रोक पेंटिंग हैं
जबकि भीम बैठका,मध्य प्रदेश के शैल चित्र का इतिहास महज 10 –25 हजार वर्षों का है.स्पेन के पचास हजार साल पुराने शैल चित्रों को देखने वालों दर्शकों से वहां की सरकार को प्रतिवर्ष करोड़ों डॉलर की आय हो रही है|
4 .अत्यधिक ऊंची प्राकृतिक पहाडी पर बने मनोरम द्रश्यों से भरपूर अनोखा किला
5 .मजबूती की मिशाल बेजोड़ अद्भुत किला
6 . स्मारकों से भरपूर जिसमें हिन्दू,मुस्लिम ,जैन धर्मों से सम्बंधित अनेकानेक स्मारक आज भी विद्यमान हैं|
7 .पाषाण काल,प्रागैतिहासिक काल,प्राचीन-मध्य कालीन व वर्तमान इतिहास काल का बेजोड़ संगम
8 . अनोखी ,अद्भुत व बेशकीमती जडी-बूटियाँ पाए जाने का स्थल
9 .1500 वर्ष पूर्व का कल्प वृक्ष ,नाना प्रकार के बृक्ष समूह
10 .जल संकट से निबटने का प्राचीन जल संग्रह का नायब व अद्बुत जलाशयों (वाटर बोडीज़) की जीवित मिशाल.
11 .खजुराहो शिल्प कला की जन्म स्थली व वर्कशॉप
12 .तमाम आक्रमणों को झेल चुका अजेय दुर्ग जो कि हजारों वर्षों के इतिहास को अपने सीने में संजोये एक मात्र जीवित किला
13 . भवनों का समूह
14 .वैधानिक,वैज्ञानिक,तकनीक,प्रशासन,वित्तीय माप में खरा
क्या हैं यूनेस्को के मानक
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक संस्कृतिक संगठन जिसे यूनेस्को नाम से जाना जाता है.द्वारा ऐसे स्मारकों जिनका विज्ञान,शिक्षा,संस्कृति क्षेत्र में अन्तराष्ट्रीय योगदान या महत्त्व हो के संरक्षण विषय पर संस्था काम करती है.सर्वप्रथम राज्य सरकार को इसकी खूबियों सहित दस्तावेज़ केंद्र सरकार को दिए जाते हैं जिसकी संस्तुति के आधार पर यूनेस्को अपना प्रतिनिधि मंडल भेजकर अपने मानकों के अनुसार विश्व धरोहर में सम्मिलित करने का निर्णय लेती है..गौर तलब है कि अन्तराष्ट्रीय धरोहर सूचिवद्ध स्मारकों की देख रेख ,संरक्षण ,सुरक्षा की जिम्मेवारी यूनेस्को की होती है.राज्य या केंद्र सरकार का हस्तक्षेप ख़तम हो जाता है.इतना ही नहीं प्रत्येक स्मारक के इस सूची में शामिल होने के बाद चार मिलियन डॉलर राशि अमुक सम्मिलित किये गए स्मारक के सुन्दरीकरण ,यातायात व्यवस्था आदि पर खर्च किये जाते हैं.इसके आलावा प्रतिवर्ष लाखों रुपये का बजट स्मारक के रख-रखाव पर खर्च किया जाता है.. विश्व धरोहर में सम्मिलित स्मारक को देखने आये दर्शकों से प्राप्त आय यूनेस्को अपने पास रखता है.जिससे गार्ड,सुरक्षा, सुन्दरीकरण आदि पर धन खर्च किया जाता है.
मानक योग्यताएं :
1.एतिहासिक कला, विज्ञान की द्रष्टिकोण से सार्वभौमिक
2..सार्वभौमिकता मूल्यों को सजाये संवारने वाले गुणों से परिपूर्ण स्मारक
3. पुरातात्विक कार्य, पाषाण कला,चित्रकला,पुरातात्विक स्वाभाव की संरचना,
4..भवनों का समूह, सौंदर्य पासना
5.भौतिक, जैव वैज्ञानिक प्राकृतिक स्वरुप
6.भूगर्भ महत्त्व
7.वैधानिक,वैज्ञानिक,तकनीक,प्रशासनिक,वित्तीय माप
क्या होगा कालिंजर किला विश्व धरोहर में आने के बाद
विश्व के मानचित्र में कालिंजर का नाम जुड़ जाएगा| देसी-विदेशी पर्यटक कालिंजर आना चाहेंगे| जिसके लिए सड़क,रेल व हवाई यातायात से कालिंजर को जोड़ दिया जायेगा| पर्यटकों के आने से क्षेत्र में रोजगार के साधन बढ़ेंगे| पढ़े-लिखे,अनपढ़ सभी तरह के लोगों को रोजगार के अवसर मिल सकेंगे| सालाना दो -तीन लाख पर्यटक आने की संभावना है| हजारों बेरोजगारों को काम मिल सकेगा| क्षेत्र का तेजी से विकास होगा|
कैसे जागी उम्मीद
कालिंजर उत्थान से दर्जनों संस्थाएं सैकड़ों लोग जुड़े हैं| लम्बे समय से जुड़े रहने के बाद जब इस दिशा में कोई सहयोग ना मिल सका तो हताश हो गए| इंटेक के सक्रिय होने के बाद कुछ लोग आगे आये हैं| अखिल भारतीय बुंदेलखंड विकास मंच जो कि पूरी तरह से गैर राजनैतिक संस्था है| अपने संशाधनों से ही बुंदेलखंड के उत्थान हेतु प्रयासरत है| कुछ वर्ष पूर्व कालिंजर किले को विश्व धरोहर में लाने का प्रयास किया था, हालांकि उन्हें इस तरह की सफलता तो नहीं मिल सकी अलबत्ता बुंदेलखंड के कालिंजर की ओर नामी गिरामी हस्तियाँ आने पर मजबूर हुईं|
इसी क्रम में मंच के महासचिव श्री नसीर अहमद सिद्दीकी के साथ डॉ.ओम प्रकाश केजरीवाल तत्कालीन केन्द्रीय सूचनायुक्त, केन्द्रीय सूचना आयोग कालिंजर किले पर ना केवल भ्रमण किया अपितु उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के पुरातत्व विद, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के कामो की समीक्षा भी की गई| बाद में श्री टी.राजेश्वर राव, महामहिम उ.प्र. शासन ने कालिंजर के किले का भ्रमण किया| इस विषय में डॉ.महेश शर्मा, केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री भारत सरकार को भी अवगत कराया गया|
हाल ही में नसीर अहमद सिद्दीकी,राष्ट्रीय महासचिव,अखिल भारतीय बुंदेलखंड विकास मंच ने कालिंजर किले को विश्व दाय लिस्ट में लाने सम्बंधित दस्तावेज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण(ASI) के पूर्व निदेशन श्री के.के.मोहम्मद के समक्ष रखे| श्री मोहम्मद ने खुशी जताई कि कोई व्यक्ति या संस्था सच्चे मान से इस दिशा में सकारात्मक कार्य कर रही है| उम्मीद है देश के सबसे बड़े व बुंदेलखंड (उ.प्र.) के अजेय दुर्ग कालिंजर को विश्वदाय सूची में शामिल करने की मुहिम में जोश आ सकेगा क्योंकि पहली बार इतिहास में ऐसा हुुआ है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण स्वयं रूचि दिखा रहा है| सिद्दीकी के अनुसार यूनेस्को का फ़ार्म ,सम्बंधित दस्तावेज़, साक्ष्य, फोटोग्राफ्स, शोध पत्र, इतिहासकारों की समीक्षा सहित फाईल तैयार है| भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग भी तैयार है| कार्य को पुख्ता करने के लिए जिलाधिकारी बांदा, सांस्कृतिक मंत्रालय उ.प्र., केन्द्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय की संस्तुतियों की आवश्यकता पड सकती है| ताकि दावा मजबूत हो सके, अगर कालिंजर विश्व धरोहर में सम्मिलित हुवा तो बुंदेलखंड का एकमात्र विश्व धरोहर होगा| गौरतलब है कि बुंदेलखंड (उ.प्र.) में 176 राष्ट्रीय धरोहर हैं| वैसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का कालिंजर किले के प्रति बेहद सकारात्मक रुख है| अखिल भारतीय बुंदेलखंड विकास मंच द्वारा रखे गए तथ्यों से वे सहमत हैं|
हाल ही में श्री नसीर अहमद सिद्दीकी,राष्ट्रीय महासचिव,अखिल भारतीय बुन्देलखण्ड विकास मंच ने इस सम्बन्ध में पर्यटन मंत्रालय,भारत सरकार के समक्ष कालिंजर किले सहित समस्त बुंदेलखंड के पर्यटन स्थल विकास का खाका पेश किया।
(नसीर अहमद सिद्दीकी,अखिल भारतीय बुंदेलखंड विकास मंच के राष्ट्रीय महासचिव हैं और कला,संस्कृति,इतिहास,शिक्षा,पर्यावरण समाज सेवा से जुड़े हैं।)